मजदूर
मजदूर
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बनाते दूसरों की छत न अपनी ये बना पाते ,
बहाते श्वेद हर पल रोटियाँ रूखी मगर खाते ,
परिश्रम से सँवारा देश पर उफ भी नहीं करते ,
जिया करते अभावों में शिकन किंचित नहीं लाते ।
*
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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मजदूर
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बनाते दूसरों की छत न अपनी ये बना पाते ,
बहाते श्वेद हर पल रोटियाँ रूखी मगर खाते ,
परिश्रम से सँवारा देश पर उफ भी नहीं करते ,
जिया करते अभावों में शिकन किंचित नहीं लाते ।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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