मजदूर
रौनक बनी जिससे शहरों की वो शहर अब छोड़ रहे हैं,
न चाहकर भी अमीर की उंगलियों पर नाचने वाले अब अपने गांव लौट रहे हैं
जगमग रहता था जिससे शहर का बाज़ार बड़े तरीके से,
आज वो ही मजदूर अपने गांव में काम ढूंढ रहे हैं,
बेचकर अपने पुश्तैनी घर को जो शहर की झोपड़ पट्टी में रहें थे,
आज वो अपने गांव में पक्के मकान की ओर रुख कर रहे हैं,
जिस जिंदगी के लिए दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर यह हो गए थे,
आज उसी जिंदगी के लिए अपने गांव यह खुशी खुशी लौट रहे हैं,
बेनाम महफिलों को छोड़ जो नाम की ख़ामोशी अपनाई थी इन्होंने,
आज उसी ख़ामोशी को छोड़ उन महफिलों में यह बड़े चाव से लौट रहे हैं,
भागे थे जो शहर की रौनक देख अपने गांव को छोड़ कर,
आज उन गांव की गलियों में लौटकर उन्हें आबाद कर रहे हैं,
अब तक बनाया शहर के अमीरों को अमीर इन लोगों ने,
अब खुद को अमीर कर अपने गांव को शहर में तब्दील करने की तैयारी कर रहे हैं,
कोई नहीं रहेगा लाचार भविष्य में आज के जैसा,
इसलिए अब अपने ही गांव में विकास की बड़ी इमारत यह खड़ी कर रहे हैं