मजदूर हूँ
” मजदूर हूँ ”
मजदूर हूँ
मजबूर नहीं
मन से मजदूरी करता हूँ |
मैल नहीं
मन में कोई
माथे को सिंदूरी करता हूँ |
मजहब
मेरा मजदूरी है
मैं ना कोई चोरी करता हूँ |
मान मेरा
मेहनत से है
ना सीना – जोरी करता हूँ |
मंदिर और
मस्जिद बनवाकर
मैं जोड़ा – जोड़ी करता हूँ |
खाता हूँ
जिस थाली में
उसमें ना ‘मोरी’ करता हूँ |
मन मेरा है
“दीप” के जैसा
उसकी तिजोरी भरता हूँ ||
(डॉ०प्रदीप कुमार”दीप”)