मजदूर मैं कहलाता हूँ
मजदूर मैं कहलाता हूँ
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कंधा पर बोझ उठाता हूँ,
कोसो दूर तक चलता हूँ।
छाले पड़ते चलते पैर पर,
मजदूर मैं कहलाता हूँ।
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काम से नहीं मैं डरता हूँ,
हर काम में आगे रहता हूँ।
राह बनाता पर्वत काटकर,
मजदूर मैं कहलाता हूँ।
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नदियाँ में बाँध बनाता हूँ,
रेल पटरियां बिछाता हूँ।
करता काम कारखाने में,
मजदूर मैं कहलाता हूँ।
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खेत में हल चलाता हूँ,
धान-गेहूँ उपजाता हूँ।
धरती माँ का हूँ लाल,
मजदूर मैं कहलाता हूँ।
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ईंट निर्माण मैं करता हूँ,
पसीना नित बहाता हूँ।
भारत माता का बेटा,
मजदूर मैं कहलाता हूँ।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
मो. 8120587822