मजदूर दिवस
मजदूर दिवस
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चिलचिलाती धूप या मूसलाधार बारिश
या शरीर कंपकपाती ठंड
सबसे बेपरवाह
सुनाई देती है आवाज चौतरफा
कहीं फावड़े ,गेंती, मशीन और कलम की
अपना खून , पसीना बहाते मजदूर की
सभी के बेहतर आज और कल के लिए……
इंसानी जरुरतो को हकीकत में
आकार देते साकार करते
अपने भविष्य से लगभग बेख़बर
जूझते अनगिनत शरीर
अपना और अपनों का
केवल पेट भर पाने के लिए…………………..
नहीं ले पाए हैं अभी तक
हक के वो सारे अधिकार अपने
आज भी जारी है जंग उनकी
अपने अधिकारों की
पूरा करने के लिए जरुरतों को
एक सामान्य जीवन के लिए…………………….
आओ हम भी साथ दें इनका
सभी के खुशहाल और बेहतर
जीवन के लिए…………………………………….
— सुधीर केवलिया