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4 Aug 2021 · 1 min read

मजदूर की व्यथा

यह शरीर है साहब बीमारी भी इसी में है
और भूख भी …… इसी में ……

इल्जाम मत दो मुझे बाहर निकलने के लिए,

डरता हूं मैं,
बीमारी से पहले कहीं भूख न मार डाले,

बीमारी से तो मैं अकेला मारूंगा साहब,
मगर भूख से मेरा परिवार मर जाएगा……

निकला तो हूं आस में बाहर ,
मगर हाथ कुछ लगता नहीं…

ये, योजनाएं तसल्ली तो देती है कानों में,
पेट नहीं भरती हैं साहब……

अब तो हक भी कम मिलता है साहब,
थोड़ा खाते हैं और गम पीकर सो जाते हैं….

दुआ भी उन्हीं के लिए करते हैं,
जो देते तो है मगर कम देते हैं…..

उमेंद्र कुमार

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 2 Comments · 627 Views
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