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2 Aug 2021 · 1 min read

मजदूर किसान

तेरे अरमानों की बलि चढते देखकर,
दुखी मन तो बहुत हुआ रुके देखकर

पहुंचा सके ना तुम,उन्हें अंजाम तक
चले जब वो साथ मिलकर गिर पडे

वे संग वैसाखी के, सहारे न पा कर
कभी भाषण के सहारे, कभी मीडिया

तो कभी ऊंचे लगे हॉर्डिंग विज्ञापन के
धरातल रहे श्मशान, बहती हुई लाशें

पनपती खरपतवार को , उखाडे नहीं
उजाड़ डाले खेत खलिहान पैदावार

उनको वायदे , दोगुनी आय के देकर,
हकों की लडाई खातिर, वे आज …

वे आज देशद्रोही है, सर्वस्व देश को देकर,
भाँपते है थे जो, मिजाज सदियों से मौसम

आज वो वोट देकर, चुनने में हार बैठे है,
अशिक्षित मजदूर जो कमाकर खाते थे.

वो संख्या बढ़ कर आज अस्सी लाख है.
स्वाभिमान था जो देश,आज हैवान क्यों है

डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस

6 Likes · 4 Comments · 595 Views
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