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24 May 2020 · 1 min read

मजदूर और बस की राजनीति

सच बताना कि तुमने
“बस” हमारे लिए की थी
हमें तो लगा कि, “बस”
दिखाने के लिए की थी।
कहो तो सही, रास्तों के
रेलों की गवाह बनकर
खाली बसें खाली ही
क्यूं चल दी थी।
हम ही तो थे तुम्हारी
निगाह के मोहताज सफर में
चर्चे तो बहुत हुए हमारे
नहीं मदद किसी के बस की थी।
राह चलते को ही बिठा लेते
कहाँ इसमें मंजूरी जरूरी थी
हम भी कहते कि, इन्होंने
मुसाफिरी हमारी कम की थी।
महत्त्वाकांक्षाओं के झंडों के तले
कुर्सियां मुबारक तुम्हें
मैंने तो बस, घर
जाने की ख्वाहिश की थी।
मेरे छालों का मरहम
तुम्हारे पास ही है, लेकिन
हर बार ठगाया गया हूँ मैं
तुमने तो मिलकर “बस” राजनीति की थी।
गोविन्द मोदी-8209507223

Language: Hindi
9 Likes · 1 Comment · 312 Views
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