मच्छर और मानव
मच्छर और मानव
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मच्छर को मच्छर कहो, मच्छर
नहीं हबीब !
मच्छरों से सदा बचो, हुए पक्के रकीब !!
है जहरीला घुर्घुरा, दे कर भिन-
भिन राग!
ऐसा दँश यह मारता, समझ न
पाते आप!!
अप्रिय सुर ये अलापते, होते
बड़े दबंग!
नहीं सुहाता काहु को, करते हैं
बड़ तंग!!
दर-दर मच्छर घूम के, करते
खूब प्रहार !
सुख शरीर को है नहीं, ना ही
कहीं करार !!
मच्छर काटे जब हमें, हम
होते बीमार !
मलेरिया के असर से, हो जाते
लाचार !!
मच्छरदानी डाल के, सदा सोइए
यार !
सबसे अच्छी बात है, करो नहीं
इंकार !!
देख मानवी दुश्मनी, कहीं नहीं
अब खैर !
मानव भी मच्छर हुए, रखते सब से बैर !!
ज्ञान से जब भेंट नहीं, तब था मनु
में प्यार!
ज्योंहि मनुज ज्ञानी हुए, त्योंहि द्वेष की बाढ़!!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
29. 06. 2019