मचलने लगता है सावन
घिरें काली घटायें जब,मचलने लगता है सावन
तभी पानी की बूंदे बन ,छलकने लगता है सावन
पहन कर देखो हरियाली, खुशी से ये धरा झूमे
खिले फूलों की खुशबू से ,महकने लगता है सावन
पड़ें नीले गगन में जब ,किनारी सात रंगों की
समा ये देख रँगीला ,बहकने लगता है सावन
न सखियाँ झूलतीं झूला, न बाबुल का हँसे अँगना
जमाना देख बदला सा , तड़पने लगता है सावन
पड़ें जब ‘अर्चना’ रिमझिम ,पवन चलने लगे मधुरिम
सुने जब गीत बारिश के ,चहकने लगता है सावन
गजल–४३२
26-07-2017
डॉ अर्चना गुप्ता