मगर मेरे भाई न शादी रचाना…..
(समसामयिक हास्य-व्यंग्य रचना)
अगर तुमको आये न खाना पकाना
पड़े भूख से आये दिन बिलबिलाना
बटन चेन गायब कभी मत लजाना
सो बेचारगी में पड़े पिनपिनाना
भले भाभियाँ मार दें रोज ताना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना.
खुले माल भर-भर के डब्बा मिलेगें
व खाला व मामू के अब्बा मिलेगें
सने चाशनी में मुरब्बा मिलेगें
बचे गर यहाँ तो ही रब्बा मिलेगें
अगर जाल फेकें तो बचना बचाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
यहाँ चार दिन तक लुभाती है ब्यूटी
सभी फँस के जिसमें बजाते हैं ड्यूटी
फँसा जो भी इसमें गयी जेब लूटी
उड़े सारे तोते बची खाट टूटी
डबलबेड पे खुद को अकेले सुलाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
ये शादी निकाहों का चक्कर बुरा है
बना देगा आदी नशीली सुरा है
घरैतिन के नयनों में तीखा छुरा है
करे जख्म गहरा लगे मुरमुरा है
कहे दूर रहना न सटना-सटाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
अगर कर ली शादी तो ताने सहोगे
सतायेगी बीवी सो तन्हा रहोगे
या मझधार में जब तड़पकर बहोगे
है खुद पे जो गुजरी वो किससे कहोगे
भले मॉल, होटल में खुद को लुटाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
जो घर आ जमेगें ये ससुरालवाले
ये बीबी करेगी उन्हीं के हवाले
ससुर-सास कूटें धमाधम निराले
लुभाएगी साली कचोटेगें साले
भले बन के फिरकी स्वयं को नचाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
दहेजी, गुजारा, तुम्हें ही छलेगा
जो हिंसा-घरेलू मुकदमा चलेगा
तो क़ानून तुमको गरम कर तलेगा
उसी की सुनेगा तुम्हें ये खलेगा
भले लिव रिलेशन में खुद को फँसाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
घरैतिन जो मारे घरैतिन से भागे
तो क़ानून पीछे से बन्दूक दागे.
खुले आँख आखिर वकीलों के आगे
रहो संतुलित तुम बुरा गर जो लागे
भले जा कचेहरी में कचरा उठाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
फँसा दे जो बीबी जमानत के लाले
यहाँ किसकी ताकत जो कुनबा छुड़ा ले
कहे जेल भेजो ये मुल्जिम हैं साले
अदालत पुलिस सब हैं ससुराल वाले
मिलें लड़कियां गर बहनजी बनाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
है क़ानून जगता पुलिस सो रही है
ये फर्जी मुकदमें बहुत बो रही है
सो पुरुषों पे हिंसा बहुत हो रही है
अभी जांच कर लें कहा जो सही है
भले हित में पुरुषों के क़ानून लाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
करो काम हाथों ये कहता ज़माना
व मस्ती में कसरत व छाती फुलाना
न लड़की पटाना न चक्कर चलाना
मिले अक्ल से जो वही खाना खाना
भले तीखी मिर्ची करेला चबाना
मगर मेरे भाई न शादी रचाना
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’