मगरूरी नहीं
हूँ किसी की जरूरत मगर ,ज़रूरी नहीं
अकड़ हैं तो बहुत मगर मगरूरी नहीं
घरौंदा बनेगा मेरा भी एक न एक दिन
हसरत हैं तो बहुत लेकिन मज़बूरी नहीं
मिल ही जाएगा, बेइंतहा चाहने वाला
ज़ज्बात भले दबे हैं मगर फकीरी नहीं
फसाद रोज हो जाती है किसी बहाने
बंधन हैं उनसे भी मगर कश्मीरी नहीं
मोहब्बत बेइंतहा हैं मुझे भी किसी से
फर्क़ इतना हैं कि उसकी तहरीरी नहीं