मकान का महूर्त
मकान का महूर्त
************
” भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी का दिन है। आप सभी को सपरिवार आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे भाई श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई रामकृष्ण से मोबाईल पर बात करते हुए कहा। रामकृष्ण ने पूछा, ” क्या तू किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहा है ?”
” नहीं भैया,ये अपना मकान है, किराये का नहीं है।”
” अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ राम कृष्ण के मुँह से निकला।
“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान बना लिया है।”
” बस भैया “, कहते हुए श्रीकृष्ण ने फोन काट दिया।
” अपना मकान” , ” बस भैया ” ये शब्द राम कृष्ण के कान और दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
राम कृष्ण और श्री कृष्ण दोनो सगे भाई थे , उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब तीन वर्ष
का ही था। रामकृष्ण जब करीब सोलह वर्ष का था तभी उनके पिता का हार्ट अटैक होने के कारण देहांत हो गया था।l पिता के मरने के पश्चात गृहस्थी का सारा भार रामकृष्ण के कंधो पर आ पड़ा था। एक छोटा भाई एक छोटी बहिन और विधवा मां इस परिवार में थी। हालाकि रामकृष्ण के चाचा भी जीवित थे परंतु अपने बड़े भाई के मरते ही उन्होंने आना जाना छोड़ दिया था।अब घर का गुजारा कैसे चलाया जाए एक बड़ी समस्या थी। रामकृष्ण ने अभी ग्यारहवीं कक्षा ही पास की थी। रामकृष्ण ने घर की गुजर करने के लिए कुछ छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए पांच ट्यूशन पकड़ लिए इससे उसको कुल सौ रुपए मिल जाते थे ।माताजी ने भी कढ़ाई सिलाई का काम पकड़ लिया जिससे उन्हें लगभग एक महीने में सत्तर अस्सी रुपए मिल जाते थे। सस्ता जमाना था ये बाते सन 1961/62 के लगभग की थी।घर का गुजारा बहुत कंजूसी के साथ होने लगा। बीस रुपए महीने किराए का एक छोटा सा मकान था। धीरे धीरे दिन गुजरने लगे। राम कृष्ण ने इंटर पास कर लिया था। उसने ट्यूशन के साथ टाइपिंग करना भी सीख लिया था। ताकि कही कोई नौकरी मिल जाए। आखिरकार भगवान ने उसकी सुन ली और रामकृष्ण को एक प्राइवेट नौकरी भी मिल गई। इस नौकरी में उसने अपने छोटे भाई श्रीकृष्ण को पढ़ा लिखा कर एक इंजीनियर बना दिया और वह अब एक बड़ा अफसर था और उसका वेतन भी काफी अच्छा था।
इसलिए उसने अपना अलग से मकान बना लिया पर बड़ा भाई अभी भी किराए के मकान में ही रहता था। चूंकि उसकी इतनी आय नही थी कि वह अपना मकान बना सके। छोटे भाई बहिन को पढ़ाने लिखाने में ही उसका सारा वेतन खर्च हो जाता था बल्कि उसे इधर उधर से कर्ज भी लेना पड़ता था।
प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते रामकृष्ण की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और श्रीकृष्ण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता था। इस चक्कर में रामकृष्ण ने अपनी शादी जल्दी नही की पर नौकरी के आठ साल बाद की । क्योंकि वह समझता था कि शादी के बाद पत्नी और बच्चों के कारण खर्च ज्यादा बढ़ जायेगा और वह इन खर्चों को अपनी सीमित आय से किसी भी हालत में नहीं पूरा कर सकता था। श्रीकृष्ण की नौकरी एक अच्छी कंपनी में लग गई थी। कम जगह होने के कारण छोटे भाई श्रीकृष्ण ने अलग से अपना मकान बना लिया था। अब रामकृष्ण ने शादी कर ली और उसके इस दौरान दो बच्चे ही गए पर वह अपना निजी मकान न बना सका और किराए के मकान में रहता रहा और पार्ट टाइम और ट्यूशन कर अपना गुजारा करता रहा और श्रीकृष्ण की पढ़ाई के लिए कर्ज को भी उतारता रहा।
मकान लेने की बात जब रामकृष्ण ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली,
, ” देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया कपड़ा नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल न लाए न खाए।दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से क्यो छिपा कर रखी।”
रविवार की सुबह श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई रामकृष्ण व उसकी पत्नी और उनके बच्चो को लाने के लिए गाड़ी भेज दी थी। कुछ समय के पश्चात ही रामकृष्ण के परिवार को लेकर वह गाड़ी एक सुन्दर से मकान के सामने खड़ी हो गयी।
मकान को देखकर रामकृष्ण के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर निकला।
हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा प्रबंध था। उस मकान के एक जैसे दो हिस्से देखकर रामकृष्ण ने सोचा और अपने मन ही मन कहा, ” देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार बना लिए हैं और एक मैं हूं कि अभी तक अपने लिए भी एक छोटा सा मकान भी न बना सका। क्या मै जन्म जिंदगी किराए के मकान में ही रहूंगा। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का भी इन्तजाम नहीं है।”
मकान देखते समय रामकृष्ण की आँखों में आँसू थे,जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।
तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई,” हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।”
श्रीकृष्ण के दोस्तों ने श्रीकृष्ण से कहा,” पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।”
यह सुन श्रीकृष्ण अपने दोस्तो से बोला, हवन में मेरे साथ मेरे बड़े भाई रामकृष्ण जी भी बैठेंगे।
” इस मकान का स्वामी मैं अकेला नही हूं मेरे बड़े भाई राम कृष्ण भी इस मकान के मालिक है । आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ अपने बड़े भैया रामकृष्ण की बदौलत से हूं। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक हिस्सा उनका और एक हिस्सा मेरा है।”
हवन कुण्ड के सामने बैठते समय श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई रामकृष्ण के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ” भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता आप बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर ही करेंगे ।”
पूरे हवन के दौरान रामकृष्ण अपनी आँखों से बहते हुए आंसुओ को पोंछ रहे थे,
जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था ।
आजकल इस कलयुग में श्रीकृष्ण और रामकृष्ण जैसे भाई बड़ी मुश्किल से ही मिलते है। आजकल तो एक भाई दूसरे भाई को जरा भी नही देख सकता बल्कि एक दूसरे से जलते रहते है। काश सभी को ऐसे भाई मिले। और एक दूसरे का सुख दुःख में ध्यान रखे। रिश्तों को हमेशा संजो व संभाल कर रखिये, यहीं जिंदगी में काम आते है।
याद रखिए रिश्ते ही आपके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी और धन दौलत है। सुख दुःख तो जीवन में आते जाते रहेंगे लेकिन यदि एक रिश्ता एक बार टूट गया तो दोबारा नही जुड़ता यह कांच की तरह होता है। इसलिए सभी रिश्तों को जिंदगी में संभाल कर राखिए उन्हें कभी भी टूटने नही देना चाहिए। अच्छे रिश्ते ही सुख दुःख में काम आते है।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम