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28 Mar 2017 · 1 min read

** मकां-मकां -मालिक **

वादों और इरादों में रखा है क्या

वादे सदा झूठे वादे निभाता है क्या

वादे – इरादे पल में बदल जाते है

कल क्या पल इन वादों का क्या

बातें लगती है दिलकश तुम्हें क्या

छुपाती हो मुझसे इश्क ओर क्या

आँखों में छायी है तुम्हारे खुमारी

आज भी लगती हो कन्या-कुमारी

दिल सजदा करता है क्या मुझको

दिल ढूंढ़ता दिल से क्या मुझको

ख़ुद ख़ुदा उतर आये जमीं पे कहे

चल मेरे साथ नन्दन-वन में रहें

मैं कहूं नहीं चाहिए स्वर्ग-अपवर्ग

धरा पे है स्वर्ग कैसे उसको तजदूं

ले लो मेरा सलाम कहो तो सजदा

तुम्हारे इजलास में कलाम पढ़ दूं

ना करो चिंता,चिंता है चिता समान

जिंदा-आदमी को करदे मुर्दा समान

मरघट जाता आदमी भूल जाता है

आता है जब लौटकर गुनगुनाता है

किरायेदार कब मिट्टी के मकां में

मर्जी-मनमर्जी से तक रह पाता है

मोह फिर भी नहीं छोड़ पाता है

कहता है मकां पे हक़ हमारा है

जब होती है डिक्री खोती बेफिक्री

मकां- बेमकां बेचारा हो जाता है

बनाओ किसी के दिल में मकां तो

बेमकां हो जाये मकां-मालिक और

मकां-मकां-मालिक तुम्हारा हो जाये।।

?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 265 Views
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