मकर सक्रांति आई है, उल्लास उमंगें लाई है
मकर सक्रांति आई है, उल्लास उमंगें लाई है
हर जगह यहां पर मेले हैं, रंगीन और अलबेले हैं
भारत की जनता बांकी है, रंग बिरंगी झांकी है
आज बड़ा स्नान पर्व है, सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है
गंगा जमुना के घाट सजे हैं, नर्मदे हर हर हर गंगे
एक साथ सब बोल रहे हैं
नदी सरोवर सभी सजे हैं, जन समुदाय से अटे पड़े हैं
एक साथ स्नान करेंगे, हर हर गंगे सभी कहेंगे
मंदिर मंदिर दर्शन होंगे विरन विरन लड्डू होंगे
छाया है उत्साह उमंग, गृहस्थी साधु और मलंग
मेलों में सजी दुकानें हैं, नाना खेल तमाशे हैं
तरह-तरह के झूले हैं, खुशियों में सब भूले हैं
खेतों में फसलें लहराईं, नई-नई फसलें भी आईं
भोगी लोहड़ी पोंगल है, पूरब ने विहू मनाई है
उत्तरायण के पर्ब ने बंधु, दुनिया में धूम मचाई है
चरम पर हैं जन जन की खुशियां, मकर सक्रांति आई है
ऋतु चक्र परिवर्तन है, ऋतु बसंत की आई है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी