मकड़ी-सा जाला बुनता है
मकड़ी-सा जाला बुनता है
ये इश्क़ तुम्हारा कैसा है
ऐसे तो न थे हालात कभी
क्यों ग़म से कलेजा फटता है
मैं शुक्रगुज़ार तुम्हारा हूँ
मेरा दर्द तुम्हें भी दिखता है
चारों तरफ़ तसव्वुर में भी
इक सन्नाटा-सा पसरा है
करता हूँ खुद से ही बातें
कोई हम सा तन्हा देखा है