मई दिवस
(१)
उत्तरी -अक्षांश के बर्फीले देशों में
मई दिवस हैं लोगो का, बासंती महीना
दिन होता है जहां, मौज- मस्ती का
शीतलता की जड़ता से विमुक्ति का
जब देखते ही धूप का टुकड़ा
भूल जाता है मानव अपना सारा दुखड़ा
और दौड़ पड़ते हैं सरपट वे
खुले मैदानों में, पार्कों में, छतों पर
मन गुदगुदाने, सेंकने, सहलाने
गरमाने अपने शीतल बदन को
औरत -मर्द- बच्चे -बूढ़े -जवान
मिलजुल कर करते धूप स्नान
सुन गीत लवापंछी और कोयल के
नाच उठता मन, जैसे मन मोरनी के
अंग -अंग दमक उठता, जैसे हो हीरा
खिल उठता गुलाब, जब गिरता पसीना
मई दिवस है लोगो का, बासंती महीना।
(२)
मई दिवस– एक पर्व है
जिस पर मजदूरों को गर्व है
पहली मई को, पूंजीवाद की घाटी में
कोई सिरफिरा,1886 में
एक स्वर से जोर से नारा लगाया था:
” * आठ घंटे काम करेंगे
* नहीं तो हड़ताल करेंगे
* बहुत सहे हम जुल्म ओ सितम
*अब न सहेंगे एक सितम
* छोड़ नारकीय जीवन अब
*पाएंगे नवजीवन हम
*अपना देश खुशहाल बनेगा
*सर्व हरा को जन सब हक होगा
*हमें हमारा सम्मान मिलेगा…..”
तभी से चल पड़ा है सिलसिला
मनाते हैं हर मजदूर चहुओर
मई दिवस की स्मृति और उत्सव
हर्ष उल्लास से, पूर्ण विश्वास से
कि कभी तो होगा हमारे सपनों का भोर
समाज और सरकार करेंगे, हम पर भी गौर।
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@स्वरचित : घनश्याम पोद्दार, मुंगेर