मंज़ूर नही
हम दोनों के बीच में ये दूरियां मंज़ूर नही
छोटी ही क्यों ना हो लड़ाइयां मंजूर नही
सुना है तकरार नही तो प्यार बढ़ता नही
इश्क का बुखार कभी सिर पर चढ़ता नही
हमने बिना लड़े बरसों बरस व्यतीत किये
कहावत झूठी हो जाये पर लड़ना हमें मंज़ूर नही
वो बाबुल का अंगना छोड़ मेरे घर आई थी
खुशियों से भरे पिटारे दहेज में संग लाई थी
हर बरस एक पिटारा खोल घर महकाती है
हमारी खुशियों में किसी का खलल मंज़ूर नही
लाल जोड़े में लिपटा पिटारा संजो कर रखा है
वो अंतिम पिटारा है चिर शैया के लिये रखा है
इसके खुलने के बाद खुशिया न होंगी जीवन में
वो मुझसे कभी जुदा होगी ये मुझे मंजूर नही
दुआ उस ईश्वर से करता कूच करें तो संग में करे
जब भी अंत हो जीवन का गठबंधन कर के मरे
किसी एक का अकेले जाना मुझे मंजूर नही
कोई भी तन्हाई में जिये ऐसा मुझे मंजूर नही