मंहगाई की मार
कैसी पड़ी अब मंहगाई की मार।
पेट्रोल डीजल हो गया सौ के पार।
महंगाई की पड़ी है जब से मार।
फीका पड़ गया हर पर्व- त्योहार।
दो सौ के ऊपर तेल है सरसों।
याद रखेंगे इसे हम सब बरसों।
कैसे घर – घर पकवान बने अब।
कैसे करे अतिथि का सम्मान सब।
राम लला का हक दिलवा कर जो।
अपना छप्पन का सीना दिखाते है।
महंगाई की मार पे थोड़ा सा भी।
वो अपना मुँह क्यों नही खोल पाते हैं।
मंहगाई के कारण जनता हुई लाचार।
राम राज का सपना लगता है बेकार।
©® रवि शंकर साह ,बलसारा, देवघर, झारखंड।।