“मंशा संस्तुति” (कविता)
वीर शहीद की पत्नी कर रही इंसाफ की गुहार
वीरांगना रूप में ठान ली उसने बनेगी पालनहार
आज पुलवामा बलिदान की बरसी है पहली
गुलाब के फूल अर्पित कर नमन है वीर जवानों को
शहादत की मौजूदगी मन में गूंजते हुए दहली
यूं तो मैंने लाखों लोगों को मरते देखा है प्रतिदिन
वतन पर जान न्यौछावर करने वाले हर शख्स पर आमीन
खून का कतरा कतरा बहा दिया हंसते-हंसते वतन के वास्ते
बिना शिकन एक बूंद तक न बचाई अपने तन के वास्ते
रूह भी मेरी इस धरती पर ललकार रही
अपने देश की बन मशाल मंशा संस्तुति कर रही
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल