*”मंदिर”*
मंदिर
गूँज उठे शंखनाद ध्वनि तरंगों से ,
अंतर्मन में प्रभु तुम्हें बसाऊँ।
मस्तक पे चंदन रोली अक्षत से ,
धूप दीप जला आरती सजाऊँ।
साँझ सबेरे तेरे चौखट पर बैठ ,
विनती कर मैं शीश झुकाऊँ।
मूरत बसी हुई मन मंदिर में ही ,
तेरी सुरत देख मंद मंद मुस्काउं।
नैन मूंद कर जब प्रभु दर्शन तेरा ,
अविरल धारा भक्ति में बह जाऊँ।
शुचित मन सुकून चैन मिल जाय ,
प्रभु सुमिरन के गुण गाते जाऊँ।
शशिकला व्यास