मंदिर – मस्जिद
क्या मंदिर – मस्जिद करते हो
इक दिन खाक में सबको मिल जाना है
क्या मंदिर – मस्जिद करते हो
सबके लहु का रंग एक
सबके लहु का प्रवाह एक
वही हृदय और धमनियां
क्या मंदिर – मस्जिद करते हो
सबका वही आहार – विहार
वही फेफड़े वही अंतरियाँँ
फिर क्यों मार – काट की बात करते हो
क्या मंदिर – मस्जिद करते हो
हवा दुषित- जल दुषित – भूमि दुषित
इसकी बात क्यों नहीं करते हो
क्या धर्म के नाम पे मन प्रदुषित करते हो
क्या मंदिर – मस्जिद करते हो ।
~रश्मि