मंदिर बनगो रे
पाए आस्था हिलोर
मन हो गया विभोर
रामलल्ला का किलोल
भक्ति मारे सबकी जोर
सारे जग मे अब यह शोर
मंदिर बनगो रे , रे मंदिर बनगो रे
यह तो राम की है माया
अयोध्या को फिर चमकाया
प्रेम संदेशा हर घर पंहुचाया
भक्ति रस से है नहलाया
जय श्रीराम सबने गाया
मंदिर बनगो रे , रे मंदिर बनगो रे
आजादी की अमृत बेला
कैसा अद्भुत है यह मेला
कोई कैसे रहे अकेला
बढ़ता खुशियो का यह रेला
हो रहा राम राज बसेरा
मंदिर बनगो रे , रे मंदिर बनगो रे
गुबंज से उंचे संस्कार
प्रेम बांहे फैलाए विस्तार
गहरे ज्ञान सी बुनियाद
भव्य इसका है सत्कार
मिलजुल जीने की आवाज
मंदिर बनगो रे , रे मंदिर बनगो रे
राम नही बस एक नाम
मर्यादा मे जीने का भान
सही राह दिखाए भगवान
जिससे सब पाए सम्मान
और जिए सुख से हर इंसान
मंदिर बनगो रे , रे मंदिर बनगो रे
संदीप पांडे “शिष्य” अजमेर