मंतर मैं पढ़ूॅंगा
कुछ कायर किस्म के वीर
जंग तो अक्सर लड़ते हैं
पर हित अपना साधते हैं
और उपयोग औरों का करते हैं
अगला उनसे संकेत पाकर
कदम बढ़ाता है
पर कितने जोखिम में है
यह जान नहीं पाता है
हमारे भी एक सहयोगी
बड़े ही सज्जन थे
मीठी बातों से दिल बहलाते थे
बंदूक हमेशा
दूसरों के कंधों पर रखकर चलाते थे
दिखते थे जीवित
पर भीतर से मर चुके थे
मेरा भी दो-चार बार उपयोग कर चुके थे
एक बार उनकी बाॅस से हो गई लड़ाई
उन्होंने अपनी वही पुरानी युक्ति भिंड़ाई
मैंने कहा— सर!
अब मैं दोबारा गफलत में नहीं पड़ूॅंगा
बिल में हाथ आप डालिए
मंतर मैं पढ़ूॅंगा।