Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Jan 2018 · 8 min read

मंझली भाभी

मंझले भैया सिर्फ नाम के मंझले थे पर रौब में वही बड़े भैया थे। वही घर के सभी काम करते थे । बड़े भाई साहब के स्वभाव से शान्त और संकोची होने के कारण मझले भैया ही पिता जी के बाद बड़े भाई की भूमिका का निर्वहन करने लगे थे । सब कुछ सामान्य सा लगता था ।जब भी कोई काम होता था मझले भैया को ही करना होता था या फिर निर्णय लेना पड़ता था । समय के साथ साथ वे भी खुद को ही बड़ा समझने लगे थे ।इस वजह से कई बार वे कुछ ज्यादती भी कर जाते थे। पर घर में सनकी का नाम देकर सब उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया करते थे ।मंझली भाभी कभी कभी इसका विरोध करतीं तो सब प्यार उडेलकर यह स्पष्ट कर देते कि उनकी बातों का कोई भी बुरा नहीं मानता ।पर वास्तव में ऐसा नहीं था।
छोटे भाई की शादी की जब बात आई तो उस समय घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे । बड़ी भाभी बीमार थी।उनकी दोनों किडनी खराब हो गई थी । घर के सभी सदस्य उनकी देख रेख में में ही लगे रहते । इसलिए विवाह की बात खत्म हो गई ।
कुछ दिन बीतने पर जब बड़ी भाभी में कोई सुधार नहीं हुआ तो उन्होंने मंझले भैया का हाथ पकड़कर डबडबायी आॅखों से कहा कि जल्दी से देवर जी की भी शादी करवा दें। वे भाभी को निश्चित रूप से जल्दी ही विवाह कराने के लिए हामी भरकर बाहर चले गए । उनकी एक खासियत थी कि प्यार से बोलने वाले या उनके निर्णय को सहज स्वीकार कर लेने वाला व्यक्ति उनका खास व्यक्ति हो जाता था ।
धीरे धीरे मंझले भैया अपने इस पद को पाकर न जाने कब तानाशाही प्रवृत्ति के शिकार हो गए कोई जान ही नहीं सका । एकदिन उन्होंने फरमान जारी किया- मैंने मुनू के लिए लड़की देख ली और रिश्ता भी पक्का कर लिया । अगले माह में आठ तारीख को बारात लेकर जाना है वहीं पर तिलक का रस्म अदायगी का भी फैसला किया गया है । यह खबर मिलते ही घर के सभी सदस्यों में कानाफूसी शुरू हो गई । मंझली भाभी मौसम का मिजाज परखने में माहिर थी परन्तु मंझले भैया का रूखा मिजाज भी वो बखूबी समझती थी । इतना बड़ा फैसला ले लेना उन्हें भी न भाया । वह सबके मन को भांपते हुए बोली- ऐसे कैसे होगा?लडकी कैसी है? खानदान कैसा है? हम तैयारी कैसे करेंगे? एकबार तो आपको पूछना चाहिए ।
इतना सुनते ही भैया गुस्सा से चिल्लाने लगे- तुमलोग खुद ही जाकर सब तय कर लो ।मुझे भी छुटकारा मिलेगा । झगड़े की स्थिति बनते देख कर अम्मा झगड़ा खत्म करने के लिए बोली- अरे बहू! तुम चुप हो जाओ। सब हो जाएगा । मंझला जो सोचा है उसे करने दो। अम्मा के इतना कहते ही सभी सवालों के साथ समस्या का पटाक्षेप भी हो गया ।
आठ तारीख को मुनू की शादी बिना किसी तामझाम का संपन्न हो गया । सबके मन में इसतरह के विवाह होने का दुःख था पर सब चुप थे । मुनू शांत था। यंत्रवत वह विवाह की समस्त रस्म निभाया । बहु भी घर आ गई। अब सब कुछ सामान्य हो गया था । अचानक बड़ी भाभी की तबियत फिर खराब हो गई । सब उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे परन्तु नाजुक हालत देखकर डाक्टर ने भर्ती करने से मना कर दिया । आनन फानन में दिल्ली ले जाने की तैयारी होने लगी किन्तु दिल्ली जाने से पहले ही भाभी चल बसी । बड़े भाई साहब ने कहा- भाभी का अंतिम संस्कार गाँव में किया जाएगा ।यही उनकी अंतिम इच्छा थी। अतः क्रिया कर्म के लिए सभी गाँव चले गए ।छोटी बहु पर किसी का ध्यान ही नहीं गया ।
मुनू को समझा बुझा कर मंझली भाभी भी गाँव चली गई ।
इधर छोटी बहु नये घर के इस अजीबो गरीब हरकत को समझ भी नहीं पा रही थी ।अम्मा ने मुनू को कहा- इसे फिलहाल उसके घर पहुंचा कर तुम गाँव आ जाना दशकर्म के बाद उसे हम बुलवा लेंगे । मुनु ने अम्मा की आज्ञा का पालन करते हुए पत्नी को उसके घर पहुंचा दिया ।
दशकर्म के बाद छोटी बहु भी गाँव गयी परन्तु बहु का किसी प्रकार का स्वागत नहीं हुआ । विवाह से लेकर पगफेरे एवं गाँव की यात्रा में भी छोटी बहु के एक भी अरमान पूरे न हो सके । एक दिन सुबह जब अम्मा ने सुना कि छोटी बहु अपने घर जाने के लिए मुनू को कह रही है तो गाँव की परेशानियों को देखते हुए जाने की अनुमति दे दी। मुनू को ही उसे उसके घर पहुंचा देने के लिए भेजा ।
अब फिर गांव का वातावरण भी धीरे धीरे सब सामान्य हो चला था । सब अपने अपने घर लौट गए। सबका ध्यान अब छोटी बहू पर गया । मंझले भैया ने अम्मा से कहा- पढी लिखी लड़की है।गाँव के अभाव पूर्ण जीवन में वह फिट न ही पाएगी। तुम कहो तो उसे अपने पास बुला लूं या फिर वह गाँव में रहना पसंद करे तो तुम बुला लेना । वह जहाँ भी रहना चाहे मुनू को कहना पहुंचा देगा तब वह अपने परीक्षा की तैयारी करने के लिए रांची जाए।अम्मा ने सहमति में सर हिला दिया ।
एक दिन मंझले भैया जब गाँव फोन किये तब पता चला कि बहु के साथ ही मुनू भी उसके घर में ही रह रहा है । उस दिन तो मंझले भैया ने अम्मा को ही खूब खरी खोटी सुनाया फिर जाकर शान्त हुए । महीने भर बाद मुनू जब मंझले भैया के पास गया तो भैया का गुस्सा फूट पड़ा । मुनू चुपचाप सुनता रहा । अपनी सफाई में एक शब्द तक न कहे। उन्होंने मुनू को घर से निकल जाने तक की बात कह डाली ।मंझली भाभी की उस दिन भी एक न चली । शाम होते ही मुनू लौट कर अपने ससुराल चला गया । फिर तो वह वहीं का होकर रह गया । छोटी बहू अपने हिसाब से जीवन जीना चाहती थी या फिर कुछ और बात थी ।ईश्वर ही जाने लेकिन खुद कभी कुछ नहीं कहती। सब बात मुनू ही बोलते और बदले में डाँट भी सुनते । शुरू शुरू में यह बात एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी किन्तु धीरे धीरे यह सब सामान्य हो गया । असामान्य था तो मंझले भैया के लिए । पहली बार उनके फैसले की अवहेलना किसी ने की थी । मंझले भैया ने फरमान जारी किया कि मुनू से कोई रिश्ता नहीं रखे । मुनू कभी कभार गाँव जाता तो अपनी व्यथा माँ को सुनाता ।
छुप छुप कर धीरे धीरे मुनू से सब बात करने लगे थे । बहु से भी सभी रिश्तेदारो की बन गयी । सबके घर बहु का आना जाना भी होने लगा सिर्फ मंझले भैया को छोड़ कर । मंझले भैया जिस लड़की को खुद पसंद करके लाए थे अब उसके नाम से भी उन्हें नफरत थी।जिसका दिन खराब हो वही छोटी बहू की चर्चा उनके सामने करता ।
छोटी बहू सबके सामने सुघड़ बहु बनने का भरपूर कोशिश करती किन्तु मंझली भाभी को ही घर में सर्वोच्च स्थान मिलता । फिर भी छोटी बहू अच्छा बनने की भरपूर कोशिश करती रहती ।
मंझले भैया के बिपरीत थी मंझली भाभी । हमेशा प्रसन्न रहना , सबको खुश रखने की कोशिश करना उन्हें बहुत पसंद था। पर छोटी बहू के साथ की घटना से मंझली भाभी का रिश्तों से विश्वास उठने लगा ।सभी रिश्तेदारों से भी उन्हें बिना किसी गलती के न बात करने की सजा मंझले भैया ने सुना दी ।घर के लोग जिस दिन फोन करते वह दिन भाभी के लिए बदतर दिन होता । बहुत कोशिश के बाद भी रिश्तों की खाई भाभी पाट न सकी।भैया के आगे उनकी एक न चलती।अगर कभी कोशिश की तो दोनों में झगड़ा हो जाता । तंग आकर मंझली भाभी ने भैया के किसी भी फैसले पर बोलना बंद कर दिया । वह समझ गयी थी जीवन की शान्ति चुप रहने से ही संभव है ।
धीरे धीरे भैया के गुस्सा के कारण रिश्तों में दूरियाॅ आने लगी। अब सिर्फ नाममात्र का रिश्ता था।
इधर मुनू के ससुराल वालों ने उसे अपने घर के समीप के फैक्टरी में काम पर रखवा दिया ।फिर तो मुनू पूरे मन से ससुराल वालों का ही हो गया । बीच बीच में वह अम्मा के पास जाता ।अम्मा का वह सबसे प्रिय पूत्र था । अम्मा भी धीरे धीरे मुनू के सब पुरानी बातों को भूल गईं । मुनू और छोटी बहु उन्हें भी बुलाते पर मंझले भैया के डर से वह यह कहकर टाल देती कि तुम लोग अपना घर लो तब जाएंगे । बहु के मायके जाकर रहना उचित नहीं ।
अब बड़ी भाभी की बेटियाँ भी बड़ी हो गयी थी । उन्हें भी यह खरूष सा व्यक्ति पसंद नहीं । मंझले भैया ने कहा था कि मैट्रिक परीक्षा के बाद नेहा को मैं ले जाऊँगा । बावजूद इसके नेहा ने चुपके से अपना नामांकन पटना में करवा लिया ।
मंझले भैया से सब खूब कपट करते ।सामने आने पर सब दिखाते कि अब भी वे उनको ही बडा मानते हैं परन्तु सब अपनी मनमानी करते। यह सब देखकर मंझली भाभी ने किसी किसी की चतुराई की बात कह डाली तब से सब उनसे भी परहेज करते। अम्मा तो सदा ही बात छुपाती।वह सोचती थी कि इससे झगड़ा कम होगा पर वही बात बाद में क्लेश का विषय बन जाता ।मंझले भैया अब पहले से ज्यादा ही गुस्सा करने लगे थे । किसी के द्वारा अपनी उपेक्षा से वह तिलमिला उठते और मंझली भाभी पर चिल्लाने लगते या अपने बेटे पर अपना गुस्सा उतारते।
मंझली भाभी भैया की खुद की पसन्द थी।उनके शिक्षा एवं गुणों से प्रभावित होकर भैया ने उनसे ब्याह किया था । दुबली पतली काया में ईश्वर ने न जाने कहाँ से इतनी ऊर्जा भरी थी कि चेहरे पर थखान होने पर भी किसी ने उन्हें चैन से बैठे कभी नहीं देखा । मंझले भैया भाभी को बहुत प्यार करते थे क्योंकि कभी भी उन्होंने भाभी की किसी इच्छा के लिए उन्हें नहीं रोका ।पर यह सब तभी संभव होता जब भैया अच्छे मूड में होते ।
अब तो उन्हें कोई भी रिश्ता पर विश्वास नहीं था। मंझली भाभी के जिद के कारण वह बड़ी मुश्किल से किसी रिश्तेदार के यहां जाने को तैयार होते । मंझली भाभी सब समझती थी इसलिए वह अपने मायके या ससुराल जाने के लिए एक बार भी उन्हें नहीं कहती ।
सब अपनी दुनिया में मग्न थे सिर्फ मंझले भैया के परिवार को छोड़ कर ।मंझले भैया के कारण भाभी भी सिमट कर रह गयी थीं । वह मंझले भैया के बड़े बनने की सजा भुगत रही थी ।

Language: Hindi
1 Like · 1022 Views

You may also like these posts

तुझे देखने को करता है मन
तुझे देखने को करता है मन
Rituraj shivem verma
कुत्ते का दर्द
कुत्ते का दर्द
Nitesh Shah
नव आशाओं को मिला,
नव आशाओं को मिला,
Dr. Sunita Singh
🙅Dont Worry🙅
🙅Dont Worry🙅
*प्रणय*
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
Rj Anand Prajapati
सेवा जोहार
सेवा जोहार
नेताम आर सी
O YOUNG !
O YOUNG !
SURYA PRAKASH SHARMA
"इंसानियत"
Dr. Kishan tandon kranti
तब घर याद आता है
तब घर याद आता है
कवि दीपक बवेजा
இந்த உலகில் எல்லாமே நிலையற்றது தான் நிலையானது இன்று நாம் நின
இந்த உலகில் எல்லாமே நிலையற்றது தான் நிலையானது இன்று நாம் நின
Otteri Selvakumar
जिनकी फरमाइशें पूरी करने में,
जिनकी फरमाइशें पूरी करने में,
श्याम सांवरा
दोहा सप्तक. . . . रिश्ते
दोहा सप्तक. . . . रिश्ते
sushil sarna
लिखते रहिए ...
लिखते रहिए ...
Dheerja Sharma
वह आदत अब मैंने छोड़ दी है
वह आदत अब मैंने छोड़ दी है
gurudeenverma198
आमावश की रात में उड़ते जुगनू का प्रकाश पूर्णिमा की चाँदनी को
आमावश की रात में उड़ते जुगनू का प्रकाश पूर्णिमा की चाँदनी को
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
क्या बात है!!!
क्या बात है!!!
NAVNEET SINGH
हसरतों की भी एक उम्र होनी चाहिए।
हसरतों की भी एक उम्र होनी चाहिए।
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
Dr Mukesh 'Aseemit'
नील पदम् के दोहे
नील पदम् के दोहे
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
निर्मोही से लगाव का
निर्मोही से लगाव का
Chitra Bisht
दिल से दिल तो टकराया कर
दिल से दिल तो टकराया कर
Ram Krishan Rastogi
*होली*
*होली*
Dr. Vaishali Verma
6 लहरें क्यूँ उफनती
6 लहरें क्यूँ उफनती
Kshma Urmila
वक्त का तकाजा हैं की,
वक्त का तकाजा हैं की,
Manisha Wandhare
राजे महाराजाओ की जागीर बदल दी हमने।
राजे महाराजाओ की जागीर बदल दी हमने।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सबके दिल में छाजाओगी तुम
सबके दिल में छाजाओगी तुम
Aasukavi-K.P.S. Chouhan"guru"Aarju"Sabras Kavi
इच्छाओं का गला घोंटना
इच्छाओं का गला घोंटना
पूर्वार्थ
महापुरुषों की मूर्तियां बनाना व पुजना उतना जरुरी नहीं है,
महापुरुषों की मूर्तियां बनाना व पुजना उतना जरुरी नहीं है,
शेखर सिंह
वाटिका विध्वंस
वाटिका विध्वंस
Jalaj Dwivedi
जीत हार का देख लो, बदला आज प्रकार।
जीत हार का देख लो, बदला आज प्रकार।
Arvind trivedi
Loading...