कोई मंझधार में पड़ा हैं
कोई तुफान में घिरा है तो कोई मंझधार में पड़ा है
आदमी-आदमी से जाने कौनसी तकरार में पड़ा है
खुद में खो गए हैं अब सबकी अपनी ही दुनिया है
कोई इकरार कोई इसरार तो कोई प्यार में पड़ा है
किसी की जिंदगी रोशन रहती हरदम चिरागों से
कोई रोजी की जद्दोजहद के अंथकार में पड़ा है
कोई इकरार में पड़ा……….
कोई मायूस रहता है तो कोई महफ़िल सजाता है
कहीं रौनक मेहमानों की कोई इंतज़ार में खड़ा है
कोई इकरार में पड़ा ………
कहीं बंगले कहीं कोठी तो कहीं हैं झोंपड़ी देखो
कोई दौलत का वारिस तो कोई कतार में खड़ा है
कोई इकरार में पड़ा………
कहीं किस्मत के मारे हैं तो कोई बस ऐश करता हैं
कहीं”विनोद”लगता है जैसे यूंही संसार में पड़ा है
कोई इकरार में पड़ा ………