मंजिल
मंजिल
वह समय, जो अब बीत गया
उसके लिए हमें क्या पछताना ?
वह समय, जो अभी बाकी है
उसे क्योंकर व्यर्थ गँवाना है ?
जो राह हमने अपने लिए चुना है
उस पर निरंतर चलते ही जाना है।
हमारी मंजिल, बेशक अभी दूर है
पर हमें सतत चलते ही जाना है।
जब तक मंजिल मिल न जाए
राह में कहीं भी रूकना नहीं है।
इसमें बाधाएँ चाहें जितनी आएँ
हमें शांतचित्त हो उसे हटाना है।
सपने, जो खुली आँखों से देखे हैं
उन्हें साकार भी हमें ही करना हैं।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़