मंजिल वो खुद बनता है
इंसान वही जो , चल पड़ता है ।
अपनी रहें जी , खुद गढ़ता है ।
व्यथित नही , थकित नही वो ,
लड़कर , विषम हालातों से ,
पुलकित प्रयास , सदा करता है ।
पा विजय वरण , प्रयासों से ,
एक नया मुकाम , रचता है ।
मंजिल तो , वो खुद बनता है ।
… विवेक दुबे”निश्चल”@..