मंजिल दूर है
मंजिल दूर है
पर जाना जरूर है
कोई कहते हैं
बहुत दूर है
और दूर है
रूक जाता हूँ
क्योंकि दूर है
थोड़ा आराम करूं
फिर चलूं
पर मंजिल दूर है।
वक्त नहीं है
यहाँ फिर रूकें क्यों ?
चलना है, सपना है
पर रूकना नहीं
अपने पथ पे
आगे बढ़ना है ।
सुना था
दर्द भी है, संघर्ष भी
तकदीर, श्रम, अवसर के
भेद कहे किसे !
लोग टूट जाते
बीच राह में
पर वो नहीं रूकते
ठहरते, संभलते
जिनके खुद के दर्द हैं
कहर हैं, मचल है
ऊर्ध्वंग को पाने को
तस्वीर सजाने, बनाने को ।
उत्साह नहीं
निष्प्रभ हूँ
तम भव में
प्रभा नहीं
क्रन्दन है
अश्रुपूर्ण है
वेदना औरों का
तड़पन भी
साथ नहीं
पर कैसा रहा !
कलुष है, कलंक हूँ
कहे तू, तू क्या है ?
मौन हूँ खुद में नहीं
मूढ़ मैं नहीं, तू है
दम्भ है ।
काक मैं, पिक नहीं
सौंदर्य नहीं, कुलटा हूँ
रास्ता दूर है
पर जाना जरूर है
मुसीबत है
पर उड़ान नहीं
हौसला है।