मंजिल तक
??मंजिल तक??
समझकर झेला जिसने दुःख का वरदान
गमों का मेला हरदम जिसके चारों ओर
करती है मंजिल हररोज इंतजार
जो पथ पर बिन सहारे अकेला चलता◆◆१◆◆
जो जद में होता है तूफानों का
कद ऊंचा सबसे उसका होता है
मिलती जिसको विपदायें पग-पग पर
पद में वही बड़ा किरदार होता है◆◆२◆◆
लगा देता है मुसीबतों को जो गला
पी जाता है गम के हर आँसुओं को
मंजिल पर जो कठिनाईयाँ आती है
वो हर किरदार को हरवक्त निभाता है◆◆३◆◆
खुद जो राह बनाता है अपने-आप
मेहनत से ही जाता है मंजिल तक
बैशाखि के सहारे जो चलकर जाता
वो मंजिल से पहले ही थक जाता है◆◆४◆◆
【★★रचनाकार:- दिनेश सिंह:नेगी★★】
(१८/१२/२०२०- शुक्रवार)
●यह रचना रचनाकार के पास सर्वाधिक सुरक्षित है●