मंजिल की तलाश
एक मंजिल की तलाश में,
चल पड़ा मैं पथिक बन,
एक अनजान भरी राहों में,
जिस राह पर चलकर ही,
मनुष्यों ने दुनिया में,
उर्ध्व अभिधान कमाया है।
मंजिल सभी को ना मिलती है,
मंजिल की तलाश में कितने मनुष्य,
भग्न देते हैं साँस बीच राहों में,
मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जो तन – मन ,बुद्धि – विवेक,
और उस्तादी के साथ,
मंजिल की तलाश में अग्रसर रहता है।
मंजिल की तलाश करने में,
बन गया था झक्की मैं,
खोज रहा अपनी मंजिल को,
रास्तों की अच्छाई में।
थक गया एक मृत प्राणी – सा,
पर ना तजनी मंजिल की चाह,
और मंजिल की तलाश में,
निरंतर आगे पनपना रहे हम,
तब जाकर मिला मुझे मंजिल है।
जिन्दगी में महान बनना है तो,
मंजिल की तलाश करना होगा।।
नाम :- उत्सव कुमार आर्या
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार