मंजिलें
“मंजिलें”
मंजिल को पा सकना भला कहीं आसान होता है,
इसकी ओर बढ़ने वाली हर राहों में एक तूफान होता है।
मंजिल को वही पाते हैं जो इन तूफानों से टकराए,
कितनी ही मुश्किलें आए राहों में वो उनसे ना घबराए।
मंजिल मिलती हैं उनको जिनकी जुबान पर कोई बहाना नहीं,
बिना कोशिशों के मंजिल मिले दुनिया में ऐसा कोई फसाना नहीं।
मुश्किलों से डरकर अगर तुम यूं ही रुक जाओगे,
कभी नहीं मिलेगी सफलता बस यूं घुटते रह जाओगे।
मंजिलें अगर जिद्दी है तो तुम भी जिद पर अड़ जाओ,
छोड़कर सारे आरामों को कड़ी मेहनत कर जाओ।
आलस्य और उदासीनता ही तुम्हारे मंजिल की दुश्मन हैं,
त्याग दिया जो तुमने इनको फिर देखो कितना सुंदर जीवन है।
करोगे अगर कठिन परिश्रम निश्चय ही तुम सफल हो जाओगे,
भूलकर सारे दुख दर्द जिन्दगी में खुशियां ही खुशियां पाओगे।
ये मत भूलना हर घने अंधेरे के बाद आती एक सुनहरी भोर है,
यही सोचकर संघर्ष करो दूर नहीं मंजिल बस कुछ मोड़ और है।।
✍️मुकेश कुमार सोनकर,
रायपुर, छत्तीसगढ़