मंज़िल मिली उसी को इसी इक लगन के साथ
मंज़िल मिली उसी को इसी इक लगन के साथ
छानी हो खाक़ जिस ने भी अपने बदन के साथ
उस शख़्स से ना पूछिये उसकी ख़ुशी का हाल
जिसने गुज़ारे दिन कई इक पैरहन के साथ
अपने किये पे उसको नदामत नहीं है आज
रहबर खड़ा है मेरा किसी राहज़न के साथ
जिस अंजुमन में उसकी ख़िलाफ़त हुई हो रोज़
देखा है हमने उसको उसी अंजुमन के साथ
जिस शख़्स को ये रंज हो महकेंगे अब तो फूल
खिलवाड़ वो ही करता है अपने चमन के साथ
~अंसार एटवी