मंज़िल खुद पास आएगी
मंज़िल खुद पास आएगी –
ऊषा की लालिमा में प्रभात का आगमन
मन नें नए जोश व उत्साह का अवतरण ,
नई चेतना , नई स्फूर्ति मन का नाचे मोर
आशा और उत्साह से मच गया शोर ।
नभ में पक्षी कलरव करते
बोले शीतल मंद समीर
हिम्मत कर तू आगे बढ़ फिर
क्यूँ छोड़े है धीर ।
कल तक थे यूं जोश-जोश में
काम में डूबे परन्तु होश में
आगे बढ़ता हर पल, हर क्षण
आज हो गए धीमे क्यों पग ?
आगे बढ़ना ठान लिया तो,
मुश्किल से घबराना क्या
बाधाएँ तो आएगी ही
रास्ते हों जब नए बनाना ।
मन को करो एकाग्र तुम
साधो निशाना लक्ष्य पर
विचलित न हो , न हो अधीर
छोड़ दो तरकश से तीर।
रखो बुलंद हौसले
गर पराजय भी मिले,
हिम्मत जुटा, मन को समझा
संघर्ष से अब तू न घबरा ।
मंज़िल भले ही दूर हो
राह कांटो से चूर हो
पग-पग पत्थर और चट्टानें
संगी साथी लगे कतराने ॥
ना विचलित कर मन, तू आगे बढ़,
नई राह पे चल ले उत्साहित मन ।
रास्ता खुद राह दिखाएगा
पत्थर भी पिघल जाएगा ।।
बिछुड़े संग मिल आगे चल
मंज़िल खुद जाएगी मिल।
पीछे न हट , न घबरा मन ,
करता जा कर्म तू हरदम
जो आगे बढ़े मुस्कराते हुए
हर मुश्किल को आसान करे
हो कितनी भी दूरी पथ की
मंज़िल खुद बढ़ पास आएगी ।।