मंज़िल की राह चलना है
अजनबी शहर में कुछ करना है
सफलता के मार्ग खुद ढूढ़ना है
देर न हो आगे बढ़ना है
आसमा की बुलंदी को छूना है
उम्मीद की चादर बुनना है
परिंदा बनकर दुर उड़ना है
हमें न मिलेगा जब-तक मंज़िल
तब -तक पीछे न मुड़ना है
हमें नदी बनकर बहना है
और सूरज बनकर ढलना है
करके बुलंद अपने हौसलों को
मंज़िल की राह चलना है
अपने सपने सकार करना है
हँसके बाधा पार करना है
रास्ता कठीन तो क्या हुआ
परवाह किये आगे बढ़ना है
अपने असफलता से सीखना है
हार मान के न रुकना है
एक दिन मिलेगी मंज़िल ज़रूर
इसी उम्मीद में आगे बढ़ना