मंज़र
मंज़र (एक सच्ची घटना)
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वो खामोशी से खड़ा उस मंजर को ताकता रह गया………………….!!!
जो बेहोश पड़ा सड़क किनारे दर्द से कराह रहा था….शायद इस लिए क्योंकि वो उसका कोई अपना नहीं था एकाएक मेरी नज़र दुर शहर की तरफ जाती एक सरकारी रोडवेज बस पर पड़ी, मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि पीड़ीत उसी बस की चपेट में आया था जब मेने यह सब देखा था तो में सड़क किनारे की तलहटी से ऊपर चढ़ा ही था,
और जब मैंने पीड़ित की ओर देखा वो जख्मी हालत में खुन से लथपथ दर्द से कराह रहा था उसे गहरी चोटें आई थी, वह 50-55 की उम्र का सावला गोरा, लंबी काठी का व्यक्ति था
मैं लगभग उससे 60-65 मीटर की दूरी पर खड़ा रहा होऊंगा जब मे सड़क के किनारे पर चढ़ा था, जब तक मैं पीड़ित के पास पहुंचता, सड़क पर दोनों ओर से वाहन आ ओर जा रहे थे ओर कुछ वाहन चालक तो अपने सफर मे इतने व्यस्त थे कि पीड़ित पर उनकी नजर भी नहीं पड़ी और कुछ वाहन चालक वाहन को धीमा कर उसे इसी हाल में देखकर अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ गए, तब तक मैं दोड़कर पीड़ित के पास पहुंच चुका था मेने देखा उसके शरीर से बहुत ज्यादा खून बह रहा था, मंजर देखकर एकाएक मैं समझ नहीं पाया कि मुझे क्या करना चाहिए और फिर क्षण भर बाद मुझे लगा की मुझे उसके सिर पर लगी चोट से बहते हुए खून को रोकने के लिए कुछ करना चाहिए, मैंने अपने गले से अपना तोलिया निकाला जो कभी-कभी मैं अपने गले में लपेट कर रखता हूं उसके सिर पर तोलिया लपेटते हुए मैंने उस व्यक्ति की और देखा जो एक जगह पर खड़ा यह सब देख रहा था और फिर मैंने नीचे देखते हुए तोलिय की गांठ मार दी, ओर पीड़ित को देखते हुए मैंने पीड़ित से पूछना चाहा कि अंकल आपका गांव कौनसा है लेकिन मैं पूछते पूछते ही रुक गया…क्योंकि उनकी हालत जवाब देने जैसी तो बिल्कुल भी नहीं थी
तभी अचानक से एक बाइक सवार ने बाइक को रोकते हुए उसने मेरी तरफ देखते हुए मुझसे पुछा… एम्बुलेंस वालो को फोन किया???
उसने पुछा ही था कि मेरे मुंह से निकल पड़ा.. नहीं,मेने नहीं किया..ओर यह कहते हुए मेरी नज़र एक बार फिर उसी व्यक्ति पर पड़ी जो बहुत देर से वहीं का वहीं (घटना स्थल से कुछ ही दुर) खड़ा यह सब कुछ देख रहा था…
फिर मैंने ओर उस व्यक्ति(बाइक सवार) की मदद से एम्बुलेंस कर्मियों को फोन कर घटना की सूचना दी ओर घटना स्थल की जगह के बारे में बताया….
उन्होंने (एम्बुलेंस कर्मियों ने) कहा हम आ रहे हैं
थोड़ी ही देर में वहां काफी लोगों का हुजूम इकठ्ठा हो चुका था, ज्यादातर वाहन चालक ओर वाहनों में सवार लोग थे ओर बाद में आये लोग वो लोग थे जो सड़क के आस पास के खेतों मे काम कर रहे थे
जो सड़क पर खड़ी भीड़ को देखकर किसी आशंकित दुर्घटना को समझकर आये होंगे
उनमें से कुछ लोग ने मदद की कोशिश की ओर ओर कुछ चुपचाप देखते रहे उनमें से कुछ लोग पीड़ित को देखकर वापिस लोट गए ओर कुछ आगे बढ़ गए,
कुछ ही देर में एम्बुलेंस कर्मि आ गये ओर पीड़ित को को अस्पताल लेकर जब निकलें तो फिर एकबार मेने उस तरफ़ देखना चाहा….जहां खड़ा वो व्यक्ति सबकुछ देख रहा था ओर जब मेंने उस तरफ़ देखा तो वो व्यक्ति वहां नहीं था आसपास देखने पर भी वो मुझे कहीं नजर नहीं आया… शायद वह व्यक्ति अब वहां से जा चुका था…
शायद जिस बस से यह दुर्घटना हुई उस बस चालक को अवश्य ही इस घटना का बोध नहीं हुआ.. अगर चालक को घटना बोध हुआ होता तो वह चालक बस रोककर परिचालक के साथ पीड़ित की मदद के लिए जरुर आगे आता…
खेर आज उस वाकए को साल भर से ज्यादा हो गया पर अब भी कभी जब मे उस घटना को याद करता हूं तो मुझे सबसे पहले वह व्यक्ति याद आता है ओर सच कहूं तो मित्रो वह व्यक्ति मुझे बहुत अखरता है मुझे नहीं पता कि व्यक्ति कौन था पर आज मैं उसे कोसता हूं मुझे नहीं पता कि वह व्यक्ति क्यों? सिर्फ मुक बाधीर बनकर वह सब देखता रहा..
पर जब सोचता हूं तो लगता है कि उसे मदद के लिए आगे आना चाहिए था…
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना में शिकार हुए लोगों को अगर समय रहते मदद मिले तो 55 फीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती है जहां तक मेरा मानना है हमें मदद के लिए आगे आना चाहिए और किसी के परिवार के दीपक को बुझने से बचाना चाहिए।
यह एक सच्ची घटना है जिसे शब्दों के माध्यम से मैंने आपके सामने प्रदर्शित किया है इस घटना को आपके सामने रखने का मेरा उद्देश्य मेरी किसी महानता को चिन्हित करना नहीं है बल्कि मेरा उद्देश्य आपको किसी की नजर में खटकने से बचाने के लिए है।
वह खामोशी से उस मंजर को ताकता रह गया शायद इसलिए क्योंकि जो दुर्घटना का शिकार हुआ वह की व्यक्ति उसका कोई अपना नहीं था….
end
दिलराज पातलवास
9468505064