मंगलमय पुकार करूँ
यदि जीवित रहूँ माते, तेरा ही श्रृंगार करूँ
अर्पण करूँ सर्वस्व तूझे, हर त्याग से सत्कार करूँ;
हो त्याग ऐसा वीरों सी, कलुषित विविध विकार हरूँ
पुष्पित – पल्लवित कर दूँ पुण्य धरा को, मंगलमय पुकार करूँ !
निश्चय आज प्रबुद्ध जन मौन, कैसे सत्य विचार धरूँ
वनिताओं- वृद्धों को निर्भय कर दूँ , प्रयत्न पूर्ण प्रकार करूँ
हर व्यथा- कथा मिटती रहे, महात्माओं का आभार करूँ
पुष्पित- पल्लवित कर दूँ पुण्य धरा को, मंगलमय पुकार करूँ !
समरसता अब खो चुकी , न्याय – धर्म की धार धरूँ
ज्ञान- विज्ञान में पहुँच रहे, सदा रक्षा में बारंबार मरूँ
धरणी को सींचित कर श्रुति स्नेह से, सुंदरतम् व्यवहार करूँ
पुष्पित- पल्लवित कर दूँ पुण्य धरा को, मंगलमय पुकार करूँ !
अरि बहु दीखते आज मही पर, त्वरित तार- तार करूँ
प्रखर तेज द्विजों का दीप्त , सत्कर्मों का सारा सार धरूँ
जन तप्त हुए अत्यधिक द्रोह से, द्रोहियों का भाग्य क्षार करूँ;
पुष्पित-पल्लवित कर दूँ पुण्य धरा को, मंगलमय पुकार करूँ !
अखण्ड भारत अमर रहे !
वन्दे मातरम् !
जय हिन्द !
©
कवि आलोक पान्डेय