मँहगाई है रहना खाना मुश्किल है।
गज़ल-
22….22….22….22….22….2
महगाई है रहना खाना मुश्किल है।
रोटी भी दो जून जुटाना मुश्किल है।
डीजल और पेट्रोल आसमाँ पर बैठे,
उनको फिर से नीचे लाना मुश्किल है।
बेच रहे सब पुरखों ने जो बनवाया,
पर बेटा फिर से बनवाना मुश्किल है।
आँसू देना बहुत सरल है जब दे दो,
पर रोते को यार हँसाना मुश्किल है।
खूब खर्च करते जम के अय्याशी पर,
भूखे को दो वक्त खिलाना मुश्किल है।
पितर पक्ष में खूब खिलाया गैरों को,
जीवित गर माँ बाप खिलाना मुश्किल है।
ब्वाय फ्रेंड संगी साथी औ’र मित्र बनें,
पर अब भाई बहन बनाना मुश्किल है।
होते हैं दुनियाँ भर में सबके रिश्ते,
अपनों से क्यों आज निभाना मुश्किल है।
गुजर रहा है प्रेमी बन कर जीवन भी,
पर कहता हूँ आज जमाना मुश्किल है।
…….✍️ प्रेमी