भ्रुण हत्या
बेटी है गर्भ के अंदर एक बाप यह जान गया था..
बेटी कि भ्रुण हत्या का फिर उसने विचार किया था…
तभी अचानक माँ की कोंख से बेटी की आवाज आयी…
क्यु मारते हो मुझको मेने क्या अपराध किया था…
दुनिया मे भी देखना चाहती हु, बेटी होना क्या पाप है…
लड़की होना क्या दोष है मेरा, क्या यह अभिशाप है…
बेटे से कम न आंको मुझे घर आँगन को खुशहाल करुगीं…
बेटी हु मे बोझ नही हु कब दुनिया ये समझेगी….
भले प्यार न करना मुझको पर आप पर जी जान लुटा दुंगी…
एक बेटे कि तरह ही आपका नाम रोशन करुगीं…
इतना सुन करके उस बाप की आत्मा बोल उठी…
मे भी तुझको जान से ज्यादा प्यार करता हु बेटी…
मे भी बेटी तुझको नाजो से पालना चाहता हु…
पर इस दुनिया कि दरिंदगी से तुझको बचाना चाहता हु…
हैवानियत है दुनिया मे तु केसे अपनी लाज बचायेगी..
दहेज लोभियो के हाथो एक दिन जला दी जायेगी…
आजादी से तुझे ये दुनिया नही रहने देगी…
तुझे बांध के रखने को नित नये नियम बनायेगी…
केसे देखुंगा मे तेरी लुटती हुई अस्मत को…
जब कुछ दरिंदो के हाथो चोराहै पर नोंची जायेगी…
रो रो कर कोंख से ही वो फिर बोल उठी…
होंसलो मे उड़ान भरना फिर मजबूत बनेगी आपकी बेटी…
खुब पड़ाकर इतना सक्षम बनाना मुझको….
झांसी की रानी जैसे मे सबक सिखाउ दरिंदो को….
मजबुत इरादो से अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाउंगी…
आप साथ देना मेरा, फिर आपकी बेटी को ये दुनिया नही जला पायेगी…
इतना सुनकर वो पिता शर्मिंदगी से झुक गया…
भ्रुण हत्या का फेसला फिर उसने बदल दिया…
वो बोला इस दुनिया को मे समझाउगां…
भ्रुण हत्या है महापाप ये सबको बतलाउगां
…
बेटी होती बोझ नही, ये सबको बतलाउगां….
बेटे से बड़कर है बेटी, बेटी रूप है शक्ति का,घर आँगन को महकायेगी…
एक दिन बड़ी होकर विदा होकर, पराये घर चली जायेगी…
बेटे की चाह रखने वालो बहु कहा से लाओगे,बिन बेटी के वंश केसे बड़ाओगे…
जब धरती ही नही होगी तो फसल कहाँ उगाओगे….
डॉ संदीप विश्वकर्मा….
चिकित्सक, आरोग्य होम्यो क्लीनिक….
ब्यावरा (राजगड़)