भ्रष्ट होने का कोई तय अथवा आब्जेक्टिव पैमाना नहीं है। एक नास
भ्रष्ट होने का कोई तय अथवा आब्जेक्टिव पैमाना नहीं है। एक नास्तिक में भी भ्रष्ट आचरण और लोभ–लालच से लबलबाया पैमाना छलक सकता है।
नास्तिकता या आस्तिकता नैतिकता लेकर नहीं आती।
नास्तिकता में जहां कोई मोरल ग्राउंड नत्थी नहीं है, वहीं धर्म में भ्रष्ट मोरल ग्राउंड पलने के चलते एक कथित धर्मी को बड़ा से बड़ा अपराध करने की छूट मिलती है।
गंगा जल अपनी देह पर छिड़क लो और मनचाहा अपराध (धर्म की भाषा में पाप) करके उससे मुक्ति पा लो!