भ्रष्टाचार…….
सज्जन का मोल कहाँ, बेइमानों का चलता जोर।
ईमानदार खाने को तरसे, घी- मलाई खाए चोर॥
रिश्ते नाते टुट गए सब, दुश्मनी का बजता ढ़ोल।
हिरण के भेष में बैठा, भेंड़िया पहनकर खोल॥
सत्य, अहिंसा, प्रेम का, अब कौन जलावे दीप।
कौआ मोती चुग गया, देखते रह गया सीप॥
जात, पांत और भाषा पर, मत बांटों अब देश।
सब मिलकर एक बनाओ, अपना भारत देश॥
अधिकारी और कर्मचारी को, केवल याद है घूस।
जितना मिले उतना खाओ, फेंक दो गुठली चुस॥
कपटी मन घंटी बजाते, सुबह शाम नित उठ।
दुसरे का माल हड़पते, बोलते दिन भर झुठ॥
चौराहे पर खड़ा दुशासन, रोज करता चीर हरण।
राम – कृष्ण देख रहे, सीता-द्रौपदी का अपहरण॥
हत्या, अपहरण, डकैती का, बाजार हुआ है गर्म।
आतंकित है देश यहाँ, सरकार ना समझे मर्म॥
मंत्री से संतरी तक चोर, चोर हुआ सब कोय।
आप बताएं इस देश का, कल्याण कहाँ से होय॥
पंडित – मुल्ला – पादरी, हैं सब के सब दलाल।
संप्रदायों में युद्ध करा कर, हो रहे है माला माल॥
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