Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 May 2023 · 2 min read

भ्रष्टाचारियों का अंतिम समय

व्यंग्य आलेख
भ्रष्टाचारियों का अंतिम समय
*************************
भ्रष्ट आचरण से अपना और अपने नाम को नये उँचे मुकाम तक ले जाना बड़ी चुनौती का काम है, जिसे फिलहाल कर पाना आप की औकात से बाहर की बात है। अच्छा है आप तो ये सब सोचें ही न।
यह पुनीत काम हम जैसे बेशर्म, बेहया और मान अपमान से बेफिक्र लोग ही कर सकते हैं।आरोप प्रत्यारोप, थाना, पुलिस, कोर्ट, कचहरी, सजा, जेल इस क्षेत्र में जमने, अर्थ लाभ के लिए टूल किट जैसा है। वैसे भी बड़ा ईमानदार बनकर रहने वालों की दशा देखने के बाद अब ईमानदारी का भूत भी भाग दौड़ में लगा है, क्योंकि वो खुद कन्फ्यूज है, ईमानदारी का तमगा लटकाये कब कौन भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाता पकड़ में आ जायेगा। कुछ पता ही नहीं है वैसे भी ईमानदारी अब सिर्फ सिद्धांत के अलावा कुछ अहमियत नहीं रखता, कहीं भी इज्जत नहीं पाता। कोई उसे पास बैठाना भी नहीं चाहता , तो चाय नाश्ता के बारे में भला कोई सोचेगा, ऐसा अपवाद भर हो सकता है। क्योंकि उसका रहन सहन हमेशा ही अभावों वाली पृष्ठभूमि का हाथ थामे रहता है, न ढंग का घर, न कपड़े, न कमाई,। ऐसे में परिवार भी ईमानदार की ईमानदारी से कुढ़ता है, मगर बर्दाश्त कर जैसे तैसे तालमेल बिठाने का प्रयास करता है, मगर कब तक? सहन शक्ति जब जवाब दे जाती है तब तूफान आ जाता है और सारा सिद्धांत, मान सम्मान सब गौड़ हो जाता है।
चलिए सिक्के के एक और पहलू का आंकलन करते हैं, भ्रष्टाचारियों का अंतिम समय कैसा होता है? अब इसका भी अनुभव आपको नहीं है, तब आप सामाजिक तो बिल्कुल नहीं हो। वैसे भी आपको अनुभव होगा भी कैसे आपको तो ईमानदारी का जोंक चूस रहा है।
भ्रष्टाचारियों का अंतिम समय निहायत ही शानदार होता है जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी होगा उसकी चर्चा उतना ही ज्यादा होगा, मीडिया कवरेज ,टी बी डिबेट, आरोप,जांच, फरारी, बैंक खातों का संचालन रुक जाना,
विदेश भाग जाना, वापस न आना अंतिम समय का महत्वपूर्ण पहलू है। काले धन का आनंद मिलता है, सजा और जेल हो गई तो मजे ही मजे हैं। रहना खाना चिकित्सा, सुरक्षा आदि की पेंशन सरकार और प्रशासन के मत्थे। भ्रष्टाचारियों का अंतिम समय मजे में बीतता है। अपवादों की गांठ बांधकर न बैठें तो भ्रष्टाचारियों का सूकून ये भी है कि पुलिस एन्काउन्टर नहीं होगा।अंतिम समय व्यक्तिगत रुप से थोड़ा बहुत मानसिक शारीरिक कष्ट भले होता है, मगर अपने परिवार को सुविधा साधन संपन्न बनाने का पूरा होते उद्देश्य को देखते हुए प्रसन्नता का ही अनुभव ही होता है। यूं कहिए कि उनका अंतिम समय लगभग उनकी सोच के अनुरूप ही होता है। क्योंकि भ्रष्टाचारियों को अपने अंतिम समय का सबसे बेहतर आंकलन होता है।
आइए! हम सब ईमानदारी से भ्रष्टाचारियों के सुखमय अंतिम समय की शुभकामनाएं प्रेषित कर उनकी हौसला अफजाई कर अपने मानवीय संवेदनाओं का प्रमाण प्रस्तुत करें और भाईचारे की नींव मजबूत करें।जय भ्रष्टाचारी, जय भ्रष्टाचार, जीवित रहे ये शिष्टाचार।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 146 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
आंख बंद करके जिसको देखना आ गया,
आंख बंद करके जिसको देखना आ गया,
Ashwini Jha
मेरी जिंदगी में मेरा किरदार बस इतना ही था कि कुछ अच्छा कर सकूँ
मेरी जिंदगी में मेरा किरदार बस इतना ही था कि कुछ अच्छा कर सकूँ
Jitendra kumar
खानदानी चाहत में राहत🌷
खानदानी चाहत में राहत🌷
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जानता हूं
जानता हूं
Er. Sanjay Shrivastava
होली की पौराणिक कथाएँ।।।
होली की पौराणिक कथाएँ।।।
Jyoti Khari
वक्त नहीं
वक्त नहीं
Vandna Thakur
राजनीति
राजनीति
Dr. Pradeep Kumar Sharma
दिल को दिल से खुशी होती है
दिल को दिल से खुशी होती है
shabina. Naaz
यात्रा ब्लॉग
यात्रा ब्लॉग
Mukesh Kumar Rishi Verma
दुःख, दर्द, द्वन्द्व, अपमान, अश्रु
दुःख, दर्द, द्वन्द्व, अपमान, अश्रु
Shweta Soni
#कहानी-
#कहानी-
*Author प्रणय प्रभात*
शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
शिव प्रताप लोधी
पहला सुख निरोगी काया
पहला सुख निरोगी काया
जगदीश लववंशी
कवि मोशाय।
कवि मोशाय।
Neelam Sharma
*सर्दी की धूप*
*सर्दी की धूप*
Dr. Priya Gupta
*यौगिक क्रिया सा ये कवि दल*
*यौगिक क्रिया सा ये कवि दल*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
खुद के व्यक्तिगत अस्तित्व को आर्थिक सामाजिक तौर पर मजबूत बना
खुद के व्यक्तिगत अस्तित्व को आर्थिक सामाजिक तौर पर मजबूत बना
पूर्वार्थ
चले न कोई साथ जब,
चले न कोई साथ जब,
sushil sarna
गरीबों की झोपड़ी बेमोल अब भी बिक रही / निर्धनों की झोपड़ी में सुप्त हिंदुस्तान है
गरीबों की झोपड़ी बेमोल अब भी बिक रही / निर्धनों की झोपड़ी में सुप्त हिंदुस्तान है
Pt. Brajesh Kumar Nayak
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
सत्य कुमार प्रेमी
बनारस की धारों में बसी एक ख़ुशबू है,
बनारस की धारों में बसी एक ख़ुशबू है,
Sahil Ahmad
शिक्षित बनो शिक्षा से
शिक्षित बनो शिक्षा से
gurudeenverma198
त्याग
त्याग
Punam Pande
*मृत्यु-चिंतन(हास्य व्यंग्य)*
*मृत्यु-चिंतन(हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
जो लोग धन को ही जीवन का उद्देश्य समझ बैठे है उनके जीवन का भो
जो लोग धन को ही जीवन का उद्देश्य समझ बैठे है उनके जीवन का भो
Rj Anand Prajapati
2462.पूर्णिका
2462.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
I'm not proud
I'm not proud
VINOD CHAUHAN
रिश्ता
रिश्ता
Santosh Shrivastava
मां के शब्द चित्र
मां के शब्द चित्र
Suryakant Dwivedi
दरदू
दरदू
Neeraj Agarwal
Loading...