भ्रम
मैं अपने आप को
मुक्त समझने वाला
गर्वीला प्राणी।
किसी बन्धन को
न स्वीकारने की
जिसने थी ठानी।
अपनी ही जेल का
कैदी बन गया
गर्व सारा बूँद बूँद
दम्भ में ढल गया।
कठिन है आत्मा को
बन्धन से मुक्त करना
इससे भी दुष्कर है
विराग को राग से
मुक्त उन्मुक्त रखना।
सोच हुआ सब
भ्रम बन गया
बन्धन दूसरों के नहीं
खुद के ही होते हैं
विश्वास की बैसाखी पर
हम उनको ही ढोते हैं।