भोलेनाथ चले लंका की ओर
रावण के कठोर तप से खुश होकर प्रकट
भोलेनाथ बोले वो माॅंग जो दूर करे संकट
यह भक्त आपसे वरदान माॅंगता है खास
लंका में ही सदैव हो आपका स्थायी वास
ये तो तेरी जटिल माॅंग है फिर भी भक्त मैं
तेरी इस इच्छा को अवश्य ही पूर्ण करुंगा
पर मेरी बातों को भी सुनो लगा कर ध्यान
शर्त में उलट हुआ तो पल भर नहीं रुकूंगा
मध्य मार्ग में कहीं अगर धरा पर रखा तो
फिर मैं उसी स्थान पर अचल हो जाउॅंगा
वहाॅं से बढ़ूॅंगा न तब आगे एक कदम भी
सदा के लिए वहीं पर अटल हो जाऊॅंगा
उत्साहित रावण बिल्कुल ही अनभिज्ञ था
देवलोक में इस घड़ी क्या खेल चल रहा है
रावण संग भोलेनाथ का स्वयं लंका जाना
सभी देवताओं को अन्दर से खल रहा है
शिव के प्रतीक चिन्ह को अपनी बाहों में ले
पूरे हर्ष से रावण चल पड़ा लंका की ओर
कठिन यात्रा के मध्य मार्ग में ही रावण को
अचानक लघुशंका की इच्छा हुई अति जोर
भगवान भोलेनाथ को अपने हाथ में रख
आखिर वह लघुशंका भी कैसे कर पाएगा
अगर क्षण भर भी पृथ्वी पर कहीं रखा तो
भोलेनाथ फिर वहीं का होकर रह जाएगा
अब वही हुआ जो रावण संग होना था तय
वरुण देव की कृपा ने लघुशंका किया जोर
इस विकट और विषम घड़ी में रावण ने
पास गाय चराने वाले ग्वाले को दिया शोर
अपने लघुशंका करने की बात कह कर
पवित्र शिवलिंग को उनके हाथ में दिया
तब वरुण देव लघुशंका की इच्छा तीव्र
करने का छल रावण के साथ में किया
देर तक अधिक भार सहन न करने पर
ग्वाला शिवलिंग वहीं पृथ्वी पर पटका
लघुशंका से वापस आने पर रावण यह
देखते ही तुरंत ग्वाले की ओर झपटा
देख नहीं वहाॅं कोई और भी अन्य चारा
रावण अपना सम्पूर्ण बल लगा रहा था
शक्तिशाली रावण की क्या मजाल जो
शिवलिंग को थोड़ा नहीं हिला पा रहा था
मस्तिष्क में जब कुछ भी नहीं आया तब
जोर लगा अंगुठे से शिवलिंग को दबाया
अन्त में बिना कामना लिंग के ही रावण
थक हार के मन वापस जाने को बनाया
भोलेनाथ को लंका नगरी में ले जाने का
स्वर्णिम सपना अब रह गया था अधूरा
ग्वाले का वेष बना स्वयं भगवान विष्णु
मध्य मार्ग में अपना कार्य कर गया था पूरा
रावण की इस अपेक्षित असफलता ने
सभी देवताओं में किया खुशी का संचार
देवताओं ने मिलकर इसी चिताभूमि में
भोलेनाथ की स्थापना का किया विचार