भोली है माँ नही समझती
***भोली है माँ नही समझती **
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जो भी होता होनें दे , माँ डर डर के कहती है!
अच्छे दिनों की आस में , वो चुप चुप रोती रहती है!
फैंकता है कोई पत्थर तो, नही टोकती है उसको !
फेंका फेंकी झूठी मूठी, उम्मीदों से चिपकी रहती है!
रोज बैंक के चक्कर काटे, ले पास बुक हाथों में
खाली गैस सेलेण्डर देख, सुबह शाम जलती रहती है!
कौन समझाये अब माँ को , कुछ नही होने वाला है
झूठ समझती बात को मेरी, मुझसे लडती रहती है!
भोली है माँ नही समझती, “सागर” फेंकी बातों को
बस फेंकी बातों में ही,अब उसके अटकी रहती है!
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बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
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11/9/18