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10 Nov 2018 · 1 min read

भोर

नवीनता की चादर ओढ़कर आए प्रभात ।
सम्पन्नता का श्रृंगारकर आए प्रत्येक रात।।
नवसृजनता का हो पुन: उद्भव ।
दृश्य हो चहुँओर प्रतिपल वैभव ।।
पुष्पित पल्लवित हो विकासपुष्पगुच्छ।
विलोपित हो दुर्भावना और विध्वंशित अत्याचार का
अंकुश ।।
शान्तिरुपीनिर्झरी वहित हो सके जब अनवरत।
सर्वत्र हो प्रज्जवलित असंख्य परिश्रमरुपी दीपक।।
अनन्त प्रगति के फसल लहलहाये चहुँओर।
हो इस भाँति उल्लासित प्रतिक्षण भोर।।

Language: Hindi
1 Like · 290 Views
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