भोर
भोर
धरा पे फैली है, सूर्य प्रभा चहुंओर;
फुदके पपिहा,पंछी और नाचे मोर।
लालिमायुक्त छटा, बिखरी है पूरब;
जाग मुसाफिर तू भी,हो गई ‘भोर’।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
स्वरचित सह मौलिक
…..✍️पंकज ‘कर्ण’
…………कटिहार।।
भोर
धरा पे फैली है, सूर्य प्रभा चहुंओर;
फुदके पपिहा,पंछी और नाचे मोर।
लालिमायुक्त छटा, बिखरी है पूरब;
जाग मुसाफिर तू भी,हो गई ‘भोर’।
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स्वरचित सह मौलिक
…..✍️पंकज ‘कर्ण’
…………कटिहार।।