भोर सुनहरी
जब भोर सुनहरी आती है
स्वर्णिम किरणें ले आती है
आसमान और धरती की
शोभा कही ना जाती है
खिल जाते हैं सुमन धरा पर
कायनात मुस्काती है
शिखर सरोवर सरिताएं
वाग वगीचे वनमालाएं
सप्त स्वरों में गातीं हैं
जब भोर सुनहरी आती है
तम को दूर भगाती है
तारों को आगोश में ले
नीलांबर चमकाती हैं
जब नई नई किरणें आती हैं
प्रेम प्रीत बरसाती हैं
कली कली खिल जाती है
पोर पोर महकाती है
लाल सुनहरे आसमान में
पंछियों के संग गाती हैं
मंद मंद पवन सुहानी
अंतर्मन छू जाती है
प्राण वायु देती जीवन को
तन मन खुश कर जाती है
खिल उठते हैं फूल धरा पर
खुशबू से भर जाती है
अप्रियतम जाती छटा प्रकृति की
सबके मन को भाती है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी