भोर वंदन
जीवन अंतहीन संभावना
क्यों इससे घबराए रे
विपरीत बना है समय यदि
स्वर्णिम अवसर भी आये रे।
छोड़ निराशा दृष्टि बदलो
अवसर को पहचानो रे
दिवस निशा अनुभूति जरूरी
मूल मंत्र सब जानो रे।
रजनी बीती हुआ सवेरा
प्रभु की अजब लीला न्यारी रे
उस ईश्वर की रचना समझो
जीवन एक फुलवारी रे