भोर का श्रृंगार
||गीतिका आधार छंद मनोरम ||
वाचिक मापनी : 2122, 2122 =14 मात्रा
भोर का श्रृंगार साथी
नेह की आभा नवेली !
गूंजते पक्षी निराले
कंठ ने खोली पहेली!
आह देखो रश्मि कैसे
घेरती संसार मेरा
प्राण में छाई सुहानी
रोशनी विस्तार घेरा !
साधना का अंश आया
भावना को साथ लेके !
लालिमा की भंगिमा मे
दिव्य छाया रूप देके !
जागती है चेतना भी
देखना हो सत्य तेरा
ज्ञान की हो रोशनी भी
योग का उत्थान मेरा !
जानता हूँ चेतना में
प्रेरणा है संग मेरे!
साथ मेरे हैं गुरू जी
भक्ति का भंडार घेरे !!
छगन लाल गर्ग “विज्ञ” !